21 May 2014

शेरो शायरी

बादलों के बीच कैसी साजिश हुई
मेरा घर था मिटटी का
मेरे ही घर बारिश हुई
जिद है अगर उन्हें बिजलियाँ गिराने की
तो हमें भी जिद है अपना आशियाना वहीँ बनाने की.....


 शाम उतरी ज़िन्दगी गाने लगी
मौत को फिर नींद आने लगी
फिर किसी की याद का दीपक जला
और अँधेरी रात मुस्कुराने लगी ............


बिल्डिंगों की भीड़ में गुम हो गई है बस्तियां,
अब कहाँ सावन के झूले,अब कहाँ वो मस्तियाँ..........


तुमसा कोई दूसरा ज़मीं पर हुआ,
तो रब से शिकायत होगी,
एक तो झेला नही जाता,
दूसरा आ गया तो क्या हालत होगी ..........


कहते हैं कि इश्क में नींद उड़ जाती है,
कोई हमसे भी इश्क करे,
कमबख्त नींद बहुत आती है.............





 

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